१.ईमान की मुख़्तसर बात हो,
२. नामज़ की थोड़ी तफसील से,
३. जिक्र और तिलावत
४. बच्चो की दीनी तरिबियत
५. मर्दों को अल्लाह के रास्ते में भेजना
६.मुकामी काम की फ़िक्र ,सुन्नत, शरिअता और सादगी
७. घरो की तालीम पर जोर दे.
८. दुआ मुख़्तसर करे.दुआ में न खुद रोए न रुलाए. बात करने में भी ना रोना ना रुलाना और न हसना न हसाना.
जिस हफ्ता मर्द की बात हो उसकी बुनियाद पर दावत न चलाई जाए. तालीम की बुनियाद पर दावत चलाई जाए.इतनी एहतियात की जाए की जिस जिम्मदार ने फैसला किया है उस घर की औरतो को भी मालुम न हो के इस हफ्ता किस मर्द की बात है .हफ्तावारी इज्तेमाई तालीम के अलावा औरतो का कोई इजतेमाअ न हो .पहले होता था उस वक्त उसकी ज़रूरत थी .अब बुज़ुर्ग उसको मना फरमाते है.
ऐसे मकामात जहा मस्तुरात की हफ्तेवारी इज्स्तेमाई तालीम हो रही है लेकिन बाकी शरायात पुरे नहीं पाए जाते एसी जगह तालीम को जारी रखा जाये लेकिन शरायत को पूरा करने की फ़िक्र और कोशिश की जाए.
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मस्तुरात में असर और मग़रिब में मुज़करा
(जमात में निकले हुए मस्तुरत के लिए – मशवरेसे तय किये जाने वाले उमूर )
१.सुन्नत और सादगी
२.औकात गुजारी
३.शोहर की इतआत
४.बच्चो की तरबियत
५.शरई पर्दा
६.मर्दों के काम में मददगार
७.मस्तुरात के काम में ५ आमाल
१.अव्वल वक्त में नमाज़ पढ़ना
२.घर की तालीम और हफ्तेवारी तालीम
३.बच्चो की तरबियत
४.कुरान की तिलावत और तास्बिहात
५.अल्लाह के रास्ते में निकलने में मर्दों की मदद करना
८. घर की तालीम ५ आमाल के साथ
१. कुरान के हलके
२.किताबी तालीम
३.छे सिफात का मुज़ाकरा
४.तशकील
५.मशवरा
९. पुरी ज़िन्दगी में सुन्नत
१०.बाहर जमात की नुसरत
११.६ सिफात का मुज़ाकरा
१२. इज्तेमाई आमाल २४ घंटे
१३. इन्फेरादी आमाल २४ घंटे
१४. मस्तुरात की इन्फेरादी दावत
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