6 SIFAT | 6 SIFAT ka Muzakra – ६ सिफात का मुज़ाकिरा

6 sifat

रोजाना के मेहनत के ज़रिये ६ सिफत पर अमली मश्क करना, जिन पे अमल करने से पुरे  दीन पे चलना आसान होता है .

6 SIFAT

१. ईमान

ईमान का मकसद :- हमारे दिलो का यकीन सही हो जाये .

जो कुछ होता है अल्लाह से होता है . अल्लाह के सिवा किसी से कुछ नहीं होता और हज़रत मुहम्मद स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम के तरिके में १०० फिसद कामियाबी है और इससे हटकर जितने भी तरीके है उसमे १०० फिसद नाकामियाबी है इसका यकीन हमारे दिलो में आजाये. ईमान पे मेहनत करेंगे तो ईमान बढेगा, ईमान पे मेहनत करना छोड़ देंगे तो ईमान कमजोर होगा. सहबा ने १३ साल ईमान को सिखा है.

ईमान का कलमा :- ला इला-ह इल्लल्लाहु मुहम्मदुर रसूलुल्लाह.

तर्जुमा :- अल्लाह के सिवा कोई माअबूद नहीं और (हज़रत) मुहम्मद स्वल्लल्लाहु-अलैहिवसल्लम अल्लाह के रसूल है.

  • एक हदीस पाक का खुलासा है, हज़रत अबू हुरैरह रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : ईमान की ७० से ज्यादा शाखे है. उनमे सबसे अफज़ल शाख “ला ईला-ह इल्लल्लाह” का कहना है और अदना शाख तकलीफ देने वाली चीजों का रास्ते से हटाना है और हया ईमान की एक (अहम) शाख है.                                                                                           (मुस्लिम, मु.ह.नं.१)
  • एक हदीस पाक का खुलासा है,  हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि नबी करीम स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया खत्ताब के बेटे ! जाओ, लोगो में येह एलान कर दो की जन्नत में सिर्फ ईमान वाले ही दाखिल होंगे.      (मुस्लिम, मु.ह.नं.१५)

ईमान को अपने दिल में मजबुत करने के लिए ३ लाईन की मेहनत है.

  • दावत :-  उम्मत में चल फिर कर अपने ईमान को सिखने की नियत से खूब दावत देना.
  • अमली मश्क :- जहा मखलूक से होता हुआ नज़र आये वहा दिल के जूबान से मखलूक से होने का इन्कार करना और अल्लाह से होने का इकरार करना याने मानना. कलमे में दो बाते है १. नफी करना याने इन्कार करना. २. इसबात करना याने इकरार करना, याने मानना.
  • दुआ :- दुआ के ज़रिए से ईमान की हकीकत और सलामती को अल्लाह से खूब मांगे.

२. नमाज़

नमाज का मकसद :- नमाज़ का मकसद है की हमारी जिंदगी  सिफत-ए-सलात पे आजाए, यानी नमाज़ वाली तरतीब पे आजाये .

जिस तरह हम नमाज़ में अल्लाह  के हुकुम और नबी स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम के सुन्नत के पाबन्द है उसी तरह हमारी २४ घंटे वाले जिंदगी  अल्लाह के हुकुम और नबी करीम स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम के तरीको पे आजाए.

१. हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया: जन्नत की कुंजी नमाज़ है और नमाज़ की कुंजी वुजू है .                                                                                        (मुस्नद अहमद,मु.ह.नं.५)

२. एक हदीस पाक का खुलासा है हज़रत अनस रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया मेरी आँखों की ठंडक नमाज़ में रखी गई  है.                                                                                                                                      (नसाई, मु.ह.नं.६)

३. हज़रत उमर रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया: नमाज़ दीन का सुतून है.       (हिलयतुल औलिया, जामेअ सगीरा, मु.ह.नं.७)

४. हज़रत उस्मान बिन अफ्फान रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : जो शख्स नमाज़ पढने को जरुरी समझे, वह जन्नत में दाखिल होंगा.                                                                 (अबूयाला,मु.ह.नं.१३)

नमाज़ की हकीकत को अपने जिंदगी  में लाने के लिए ३ लाइन की मेहनत है

  • दावत :- उम्मत में चल फिर कर अपने नमाज़ को सिखने के नियत से नमाज़ की दावत देना .
  • अमली मश्क :- नमाज़ के जाहिर और बातिन को दुरुस्त करना याने सही करे और वुजू से लेकर सलाम फेरने तक जो पढने वाली और करने वाली चीज़े सब दुरुस्त करे. नमाज़ का बातिन अल्लाह का ध्यान है याने में अल्लाह को देख रहा हु ,या अल्लाह मुझे देख रहे है .
  • दुआ :- दुआ के ज़रिये से सहाबा जैसी नमाज़ और नमाज़ की हकिकत को अल्लाह से खूब मांगे.

३. इल्म और जिक्र

इल्म का मकसद :- हमारे अंदर तहकीकत का जज्बा पैदा हो जाये.                                                  

हर ईमान वाले को कम से कम इतना जानना है की हलाल और हराम की पहचान हो जाये. हाल के अम्र को पहचानने वाले बन जाये. हम जिस हाल में है अल्लाह हम से क्या चाहते है और हुजुर स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम का तरीका क्या है और ईमान के तकवीयत के लिए और नमाज़ को जानदार बनाने के लिए इल्म पर मेहनत करनी है .

  • हज़रत उस्मान बिन अफ्फान रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : तुममें सबसे बेहतर शख्स वह है जो कुरआन शरीफ सीखे और सिखाए .                                   (तिर्मिज़ी, मु.ह.नं.२)
  • हजरत अबू हुरैरह रजियल्लाहु अन्हु फरमाते है कि मैंने अबू कासिम स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम को यह इर्शाद फरमाते हुए सुना  : तुममें सबसे बेहतर वे लोग है , जो तुममें सबसे अच्छे अखलाक वाले है जब कि साथ – साथ उनमे दीन की समझ भी हो .                                                              (इब्ने हब्बान, मु.ह.नं.१५)
  • हज़रत इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : लोगो को (दीन) सिखाओ , उन के साथ आसानी का बरताव करो और सख्ती का बरताव न करो .(मुस्नद अहमद, मु.ह.नं.१८)

इल्म की हकीकत को अपने  जिंदगी  में लेन के लिए ३ लाइन की मेहनत है

  • दावत :- तालीम के हलके में बैठ कर इल्म के फ़जाईल सुने और उम्मत में चल फिर कर इल्म की दावत दे .
  • अमली मश्क :- इल्म दो तरह का है १ फ़जाईल वाला इल्म २ मसाईल वाला इल्म

फ़जाईल वाला इल्म तालीम के हलके में बैठकर और किताबो से हासिल करना है और मसाईल वाला इल्म अपने मस्लक के मोतबर उल्माओं से सिखना है .

  • दुआ :-  दुआ के ज़रिये से इल्म की हकिकत को अल्लाह से खूब मांगे.

जिक्र

जिक्र का मकसद :- जिक्र का मकसद यह है की हमारे अंदर अल्लाह का ध्यान पैदा हो जाए.

१.जिक्र अल्लाह की मोहोब्बत पैदा करता है .२.जिक्र अल्लाह का कुर्ब पैदा करता है .३.जिक्र जन्नत के बाग है.४.जिक्र दिलो में नरमी पैदा करता है .५.जिक्र करने वाला जिंदा के मानिंद है और जिक्र न करने वाला मुर्दा के मानिंद है .६.जिक्र से दिलो की सफाई होती है .७.जिक्र से आने वाले आजाब अल्लाह रुकाते है .

  • एक हदीस पाक का खुलासा है की, हज़रत सहल बिन हुन्नैफ़  रजियल्लाहु अन्हु रिवायत करते है कि रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : मज्लिसो का हक अदा किया करो (उसमे से एक यह है की) अल्लाह तआला का ज़िक्र कसरत से करो.                                                                                   (तबरानी,मज्मउज्जवाइद, मु.ह.नं.१३९)
  • एक हदीस पाक का खुलासा है की, हज़रत अबू सईद खुदरी रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : बहुत से लोग ऐसे है जो नर्म-नर्म बिस्तरो पर अल्लाह तआला का ज़िक्र करते है, अल्लाह तआला उस ज़िक्र की बरकत से उनको जन्नत में आला दर्जो में पहुचा देते है .(अबूयाला, मु.ह.नं.१४६)
  • हज़रत अब्दुल्लाह बिन अम्र रजियल्लाहु अन्हु फरमाते  है कि मैंने अर्ज़ किया : या रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ! जिक्र की मजलिस का क्या अज्र व् इनाम है ? इर्शाद फ़रमाया : जिक्र की मजलिस का अज्र व इनाम जन्नत है ,जन्नत.                                                                                                                 (तबरानी, मु.ह.नं.१५६)

ज़िक्र की हकीकत को अपनी जिंदगी में लाने के लिए ३ लाईन की मेहनत है.

  • दावत :- उम्मत में चल फिर कर ज़िक्र की खूब दावत दे .
  • अमली मश्क :- १.कुरआन शरीफ की तिलावत करे, २.मसनुन दुआ का एहतमाम करे  और  ३. सुबह , शाम ३ तस्बिहात की पाबंदी करे , ३ रा कलमा ,दरूद शरीफ और इस्तगफार पढ़े .
  • दुआ :- दुआके ज़रिये से जिक्र की हकीकत को खूब मांगे.

४. इक्रामे मुस्लिम

इक्रामे मुस्लिम का मकसद :- इक्रामे मुस्लिम का मकसद यह है की उम्मत में जोड़ पैदा हो जाए .

अपने हक को माफ़ करके दुसरो के हुकूक अदा करना .जो अपने लिए पसंद करे वही अपने भाई के लिए भी पसंद करे. इज्ज़त की नगाह से देखे और उसका इकराम करे. सबको फायदा पहुँचाये. 

  • हजरत अबूदर्दा रजियल्लाहु अन्हु फरमाते है कि मैंने रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम को यह इर्शाद फरमाते हुए सुना  : मुझे कमजोरो में तलाश किया करो , इसलिए कि तुम्हारे कमजोरो की वजह से तुम्हे रोजी मिलती है और तुम्हारी मदद होती है .                                         (अबूदाऊद, मु.ह.नं.१५)
  • हजरत अबू हुरैरह रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : जो मुसलमान की लग्जिश को माफ़ करे, अल्लाह तआला कियामत के दिन उसकी लग्जिश को माफ़ फरमायेंगे.                                                                                                       (इब्ने हब्बान, मु.ह.नं.८६)
  • हजरत बरा रजियल्लाहु अन्हु रिवायत है करते है कि रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : जो दो मुसलमान आपस में मिलते है और मुसाफा करते है तो जुदा होने से पहले दोनों के गुनाह माफ़ कर दिए जाते है.                                                                                                     (अबूदाऊद, मु.ह.नं.१०४)

 इक्रामे मुस्लिम की हकीकत को अपने जिंदगी  में लाने के लिए ३ लाइन की मेहनत है

  • दावत :- उम्मत में चल फिर कर इक्रामे मुस्लिम की दावत दे.
  • अमली मश्क :- अपने अखलाक और मामलात को सही करे और हुजुर स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम के अखलाक की मश्क करे, सलाम और हदिया को आम करे.
  • दुआ :- दुआ के ज़रिये से इक्राम की हकिकत को अल्लाह से मांगे.

५. इख्लासे नियत

इख्लासे नियत का मकसद :- इख्लासे नियत का मक्सद है की हमारे अंदर लिल्लाहियत का जज्बा पैदा हो . याने हम जो भी नेक अमल करे सिर्फ अल्लाह को राजी करने के लिए करे.

  • हजरत अबू उमामा रजियल्लाहु अन्हु रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम का इर्शाद नक़ल करते है : पोशीदा तौर पर सदका करना अल्लाह तआला के गुस्से को ठंडा करना है .                                                                                                      (तबरानी, मु.ह.नं.१८)
  • हजरत साअद रजियल्लाहु अन्हु फरमाते है कि रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम को यह इर्शाद फरमाते हुए सुना  : अल्लाह तआला परहेजगार, मखलूक से बेनियाज़, गुमनाम बन्दे को पसंद फरमाते है .                                                   (मुस्लिम, मु.ह.नं.२१)
  • हजरत अबू मसउद रजियल्लाहु अन्हु  रिवायत करते है रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : जब आदमी अपने घर वालो पर सवाब की नीयत से खर्च करता है (उस खर्च करने से ) उसको सदका का सवाब मिलता है.                                                                                                        (बुखारी, मु.ह.नं.२९)

इख्लासे नियत की हकीकत को अपने जिंदगी  में लाने के लिए ३ लाइन की मेहनत है.

  • दावत :- उम्मत में चल फिर कर अपने अंदर इख्लास पैदा करने के लिए इखलास की दावत देना .
  • अमली मश्क :- अपने हर नेक अमल में नियत को टटोले १. अमल करने से पहले किसके  के लिए करने जा रहा हु .२. दरर्मीयान में किसके लिए कर रहा हू .३. आखिर में किसके लिए किया . तीनो में अल्लाह की रजा हो .अमल के ख़त्म पर नियत को नाकिस करार देते हुए अल्लाह से इस्ताग्फार करना है .
  • दुआ :- दुआके ज़रिये से इखलास की हकिकत को अल्लाह से खूब मांगे.

६. दावत व तबलीग 

दावत ए इलल्लाह का मकसद :- हमारे जान व माल का सही इस्तेमाल हो जाये.

  • हजरत अबू हुरैरह  रजियल्लाहु अन्हु रिवायत करते है की रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम को यह इर्शाद फ़रमाते हुए सुना  : अल्लाह तआला के रास्ते में थोड़ी देर खड़ा रहना शबे कद्र में हज्रे अस्वद  के सामने इबादत करने से बेहतर है    (इब्ने हब्बान, मु.ह.नं.७८)
  • हजरत इब्ने अब्बास रजियल्लाहु अन्हु  से रिवायत है कि नबी करीम स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : जब तुम से अल्लाह तआला के रास्ते में निकलने को कहा जाए ,तो तुम निकल जाया करो.                (इब्ने माजा, मु.ह.नं.८२)

दावत ए इलल्लाह को अपने जिंदगी में लाने के लिए ३ लाइन की मेहनत है .

  • दावत :- उम्मत में चल फिर कर अपने जान माल को सही इस्तेमाल करने की नियत से दावत दे.
  • अमली मश्क :- अपने जिंदगी  की तरतीब बनाने के लिए हर साल ४ महीने, साल में चिल्ला,महीने में ३ दीन और मकामी ५ काम, १. मशवरा २. २.५ घंटे लगाना ३.तालीम- मस्जिद की और घर की ४.गश्त करना – अपनी मस्जिद और पड़ोस की मस्जिद. ५.महीने में हफ्ता तय कर के ३ दिन लगाना. तआम कयाम के साथ मरकज़ पोहोचना.
  • दुआ :- दुआ के ज़रिए से जान माल के सही इस्तेमाल की दुआ करना.

७. लायानी बातो से बचना

लायानी बातो का मक्सद :- लायनी बातो का मकसद यह है की हम बेकार बातो से और बेकार कामो से जिस से ना दीन का फायदा ना दुनिया का फायदा ऐसे बातो से और कामो से बचे.

  • जैसे आग सुखी लकड़ी को खा जाती है उसी तरह लायानी बाते नेकियो को खा जाती है.
  • जैसे वस्त्रा बालो को साफ़ कर देता है उसी तरह लायानी बाते नेकियो को साफ़ करती है.
  •  हजरत अब्दुल्लाह रजियल्लाहु अन्हु फरमाते है की मैंने रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम को यह इर्शाद फरमाते हुए सुना : इंसान की अक्सर गलतिया उसकी ज़बान से होती है.                                                         (तबरानी, मु.ह.नं.२२)
  • हजरत अबू हुरैरह रजियल्लाहु अन्हु रिवायत करते है कि रसूलुल्लाह स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने इर्शाद फ़रमाया : आदमी के गुनाहगार होने के लिए यह काफी है की वह हर सुनी सुनाई बात को बगैर तहकीक के बयान करे.                                                                                                                                  (अबूदाऊद, मु.ह.नं.४४)

लायानी बातो को अपने जिंदगी से निकलने के लिए ३ लाइन की मेहनत है .

१.दावत :- लायनी बातो से बचने की दावत देना.

२.अमली मश्क :- अपने जबान की हिफाज़त करना.

३.दुआ :- दुआ के ज़रिए लायनी बातो और कामो से बचने की दुआ करना.

इसलिए अल्लाह से दुआ करे, इस मेहनत को जिंदगी का मकसद बनकर इस्तेकामत के साथ मौत तक करने की तौफिक अता फरमाए.

दुआ पढ़े :- सुब्हानल्लाही व बिहम्दी ही सुब्हान कल्ला हुम्म व बिहम्दी क अशहदू  अल्ला इलाह इल्ला अन्त अस्तगफिरुक  व अतुबू  इलैक . सुब्हान रब्बिक रब्बिल इज्जती अम्मा यसिफून व् सलामुन आलल मुरसलीन वलहम्दुलिल्लाही रब्बिल आलमीन.

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