Janaze ki Namaz
१. नियत करना
२. अब पहली तकबीर “अल्लाहु अकबर” कह कर आम नमाज़ों की तरह दोनों हाथ बाँध लें
नियत पढ़ने के बाद अपने दोनों हाथो को कानो के लव तक ले जाये और अल्लाहु अक्बर कह कर हाथो को बांध ले और फिर सना पढ़े। सना में ध्यान रखें कि “वतआला जद्दुका” के बाद “वजल्ला सनाउका वलाइलाहा ग़ैरुका” पढ़ें
३. अब बगैर हाथ उठाये दूसरी तकबीर कहें “अल्लाहु अकबर” और दुरूदे इब्राहीम पढ़ें
४. अब बगैर हाथ उठाये तीसरी तकबीर कहें “अल्लाहु अकबर” और ये दुआ पढ़ें
अगर मय्यत मर्द या औरत की हो तो ये दुआ पढ़े
अल्लाहुम्मग़फ़िरली हय्यिना व मय्यितिना वशाहिदिना व ग़ाईबिना व सग़ीरिना व कबीरिना व ज़करि ना वउन्साना अल्लाहुम्म मन अहययतहू मिन्ना फ़ अहयिही अलल इस्लाम वमन् तवफ़्फ़ैत हू मिन्ना फ़ तवफ़्फ़हू अलल ईमान
अगर नाबालिग लड़की या लड़का का जनाजा हो तो तीसरी तकबीर के बाद ये दुआ करें
नाबालिग लड़की के लिए :- अल्लाहुम्मज अल्हा लना फ़रतंव्व वज अल्हा लना अजरंव व ज़ुख़-रंव वज अल्हा लना शाफ़िअतं व मुशफ़्फ़अह .
नाबालिग लड़का के लिए :- अल्लाहुम्मज अल्हु लना फ़रतंव्व वज अल्हु लना अजरंव्व व ज़ुख़-रंव्वज अल्हु लना शाफ़िअतंव मुशफ़्फ़आ.
५. अब बगैर हाथ उठाये चौथी तकबीर कहें अल्लाहु अकबर और हाथ बांधे बांधे ही सलाम फेर लें.
६.इमाम तक्बीरें बुलन्द आवाज़ से कहे और मुक़्तदी आहिस्ता। बाक़ी तमाम अज़्कार इमाम व मुक़्तदी सब आहिस्ता पढ़ें
७.जनाज़ा नमाज़ के सलाम फेरने के बाद आप कोई भी दुआ मैयत के मगफिरत के लिए पढ़ सकते है. बस नमाज़ ए जनाज़ा हो गयी अब जनाज़ा उठा कर कब्रस्तान ले चलिए.
नमाज़ ए जनाज़ा पढ़ने के बाद आप जानते है कब्र पर मिट्टी कैसे देते है कब्र पर तीन बार मिट्टी दिया जाता है। कब्र पर मिट्टी आराम से और इत्मीनान से देना चाहिए। बाज़ लोग कहते है पांच बार मिट्टी देते है मगर ये गलत है कब्र पर तीन बार ही मिट्टी देना चाहिए। हर बार मिट्टी देते वक़्त दुआ पढ़ना चाहिए जो निचे दिया गया है।किसी भी मैयत में आप जाए शिरकत करें तो सबसे पहले आप कबरिस्तान के अंदर दाखिल होने से पहले अस्सलामु अलैकुम वरहमतुल्लाह वबरकाताहु जरूर करें किसी भी जनाजे में मिटटी देना का इस्लामी शरई तरीका ये है की एक आदमी या एक इंसान को तीन 3 बार मिटटी देना है कब्र पर मिटटी डालते वक़्त समय मुस्तहब यह है की जनाजे के सर के तरफ सुरु करें और अपने दोनों हाथो में मिटटी भर के कब्र पर डालें.पहली बार मिट्टी डालते वक़्त “मिन्हा खलक ना कुम” दूसरी बार मिट्टी डालते वक़्त “व फिहा नुइदुकुम”तीसरी बार मिट्टी डालते वक़्त “व मिन्हा नुखरिजुकुम तारतन उखरा”.
मय्यत को दफ़न करने में जल्दी करना सुन्नत है . मय्यत को कबर में रखे तो यह दुआ पढ़े “बिस्मिल्लाही वअला मील्लती रसुलिल्लाही सल्लल्लाहु अलैहिव सल्लम “. मय्यत को कबर में इस तरह लिटाना चाहिए के पूरा सीना किब्ला रुख हो और पुश्त को कबर की दीवार से लगा दे.
Janaze ki Namaz
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जनाज़े की नमाज़ (Funeral Prayer) इस्लाम में मृतक के लिए अदा की जाने वाली एक विशेष नमाज़ है। यह नमाज़ उस व्यक्ति के लिए होती है जो इस दुनिया से चला गया है, और यह नमाज़ उसके लिए दुआ और माफी का माध्यम होती है। यहाँ पर जनाज़े की नमाज़ के बारे में जानकारी दी गई है:
जनाज़े की नमाज़ की विशेषताएँ
- सामूहिक नमाज़: जनाज़े की नमाज़ आमतौर पर एक समूह में अदा की जाती है, जिसमें परिवार, दोस्त और समुदाय के लोग शामिल होते हैं।
- चार रकात नहीं: यह नमाज़ चार रकातों की तरह नहीं होती है। इसमें केवल चार तकबीर होती हैं।
जनाज़े की नमाज़ का तरीका
- मृतक का शव: पहले, मृतक का शव (जनाज़ा) ठीक से तैयार किया जाता है और उसे क़ाबा की दिशा में रखा जाता है।
- इह्तिराम: जनाज़े की नमाज़ अदा करते समय सभी लोग इह्तिराम (सम्मान) से खड़े होते हैं।
- इमाम का खड़ा होना: इमाम (नमाज़ का नेता) जनाज़े के सामने खड़ा होता है।
- नियत (इरादा): इमाम कहता है कि वह जनाज़े की नमाज़ पढ़ाएगा, और नमाज़ अदा करने वाले लोग भी अपने दिल में ये नियत करते हैं।
- पहली तकबीर: इमाम “अल्लाहु अकबर” कहता है, और सभी लोग भी इसे दोहराते हैं। इसके बाद:
- फातिहा (सूरह अल-फातिहा) पढ़ी जाती है।
- दूसरी तकबीर: फिर से “अल्लाहु अकबर” कहा जाता है।
- इसके बाद, मृतक के लिए विशेष दुआ की जाती है, जैसे: “اللّهُمّ اغفِرْ لَهُ وَارْحَمْهُ” (हे अल्लाह! उसे माफ कर और उस पर रहम कर)।
- तीसरी तकबीर: फिर “अल्लाहु अकबर” कहा जाता है।
- इस बार, मुसलमानों के लिए दुआ की जाती है, जैसे: “اللّهُمّ اجمعْنَا في جَنّتكَ”.
- चौथी तकबीर: एक बार फिर “अल्लाहु अकबर” कहा जाता है।
- इसके बाद, दुआ का समापन किया जाता है।
- सलाम: इमाम “सalamu alaikum wa rahmatullah” कहकर सलाम करता है। सभी लोग भी सलाम दोहराते हैं।
जनाज़े की नमाज़ के लाभ
- मृतक के लिए दुआ: यह नमाज़ मृतक के लिए दुआ और अल्लाह की रहम की अपील करने का एक माध्यम है।
- समुदाय की एकता: यह नमाज़ समुदाय के लोगों को एक साथ लाती है और उन्हें एकजुट करती है।
- अंतिम इबादत: यह मृतक के प्रति अंतिम इबादत है, जिससे उसकी आत्मा को शांति मिल सके।
निष्कर्ष
जनाज़े की नमाज़ एक महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य है, जो इस्लाम में मृतकों के प्रति सम्मान और दुआ का प्रतीक है। इसे इमानदारी और ध्यान के साथ अदा करना चाहिए, ताकि मृतक की आत्मा को शांति मिले।
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