Hajj ki Sunnate ye hai. Hajj ke darmiyan ye tamam sunnato pe amal karna hai.
- तवाफ़-ए- क़ुदूम यानी मीक़ात के बाहर से आने वाला मक्का मुअज़्ज़मा में हाज़िर होकर सब से पहले जो तवाफ़ करे उसे तवाफ़-ए- क़ुदूम कहते हैं, तवाफ़-ए- क़ुदूम मुफ़रिद और क़ारिन के लिए सुन्नत है मुतामत्ते के लिए नहीं।
- तवाफ़ का हजर-ए-असवद से शुरू करना।
- तवाफ़-ए- क़ुदूम या तवाफ़-ए- फ़र्ज़ में रमल करना यानी अकड़ कर चलना।
- सफ़ा व मरवा के दरमियान जो दो सब्ज़ मील हैं यानी हरे रंग के निशान हैं उनके दरमियान दौड़ना।
- इमाम का मक्का में सात (7) ज़िलहिज्जा को, अराफ़ात में नौ (9) ज़िलहिज्जा को और मिना में ग्यारह (11) को ख़ुतबा पढ़ना।
- आठ (8) ज़िलहिज्जा की फ़ज्र के बाद मक्का से रवाना होना ताकि मिना में पांच नमाज़ें पढ़ी जा सकें। नौ (9) ज़िलहिज्जा रात मिना में गुज़ारना ( जोहर, असर, मगरिब, इशा, फज़र )
- सूरज निकलने के बाद मिना से अराफ़ात को रवाना होना।
- ४९ या ७० कंकरिया इकट्ठी करे .
- वुक़ू़फे़ अरफ़ा के लिए ग़ुस्ल करना।
- अराफ़ात से वापसी में मुज़दलफ़ा में रात को रहना।
- सूरज निकलने से पहले यहाँ से मिना को चला जाना।
- दस और ग्यारह के बाद जो दोनों रातें हैं उनको मिना में गुज़ारना और अगर तेरह को भी मिना में रहा तो बारह के बाद की रात को भी मिना में रहे।
- अबतह यानी वादी-ए-मुहस्सब में उतरना, चाहे थोड़ी देर के लिए हो और इनके अलावा और भी सुन्नतें हैं जिनका ज़िक्र बीच-बीच में आएगा और हज के मुस्तहिब्बात और मकरूहात का बयान भी मौक़े-मौक़े से आएगा।
हज की सुन्नतें (हज के दौरान की जाने वाली सुन्नत कार्य) वे काम हैं जो पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने हज के दौरान किए थे। इन कार्यों का पालन करना अत्यधिक सवाब (पुण्य) का कारण बनता है, लेकिन यदि इन्हें न किया जाए, तो हज सही रहता है। यहाँ हज की मुख्य सुन्नतें दी गई हैं:
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1. इहराम की सुन्नतें
- इहराम बांधने से पहले गुस्ल (स्नान) करना।
- इहराम बांधने के बाद दो रकात नफल नमाज़ अदा करना।
- पुरुषों का सफेद कपड़ा पहनना।
- इहराम के बाद तल्बिया (लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक) पढ़ना।
2. तवाफ की सुन्नतें
- तवाफ करते समय रमल करना (पहले तीन चक्करों में तेज़ कदमों से चलना)।
- रुक्न-ए-यमानी (काबा के एक कोने) को छूना या उसकी तरफ इशारा करना।
- हजरे असवद (काले पत्थर) को बोस देना या उसके सामने से गुजरते हुए इशारा करना।
- तवाफ के बाद मक़ाम-ए-इब्राहीम के पास दो रकात नमाज़ अदा करना।
3. सई की सुन्नतें
- सफा और मरवा की पहाड़ियों पर चढ़ते हुए दुआ पढ़ना।
- सफा और मरवा के बीच के हरे खंभों के बीच दौड़ना (यह केवल पुरुषों के लिए है)।
4. अराफात की सुन्नतें
- अराफात के मैदान में प्रवेश से पहले गुस्ल करना।
- अराफात में जोरह और अस्र की नमाज़ एक साथ अदा करना (जमाअत के साथ)।
- अराफात में खुत्बा सुनना और दुआ में व्यस्त रहना।
5. मुज़दलिफ़ा की सुन्नतें
- मुज़दलिफ़ा में रात गुज़ारना और फज्र की नमाज़ जमाअत के साथ अदा करना।
- मुज़दलिफ़ा में रुक कर दुआ करना और जमरत के लिए पत्थर इकठ्ठा करना।
6. जमरात की सुन्नतें
- कुब्र जमरा (सबसे बड़ी जमरा) को पत्थर मारने के बाद दुआ करना।
- पत्थर मारते समय बिस्मिल्लाह और अल्लाहु अकबर कहना।
7. क़ुर्बानी की सुन्नतें
- क़ुर्बानी (बलि) के जानवर का चुनाव अच्छी तरह करना और खुद अपनी तरफ से क़ुर्बानी करना या करवाना।
8. हलाक या क़स्स
- पुरुषों के लिए सिर के बाल पूरी तरह मुंडवाना (हलाक) या बाल कटवाना (क़स्स)।
- महिलाओं के लिए बाल का एक छोटा सा हिस्सा काटना।
9. तवाफ़-ए-विदा (विदाई तवाफ)
- मक्का छोड़ने से पहले विदाई तवाफ करना। यह आखिरी तवाफ होता है, जिसे मक्का से जाते समय किया जाता है।
10. सादगी और विनम्रता
- हज के दौरान सादगी बनाए रखना, ज्यादा से ज्यादा इबादत और दुआ में व्यस्त रहना।
- दूसरों की मदद करना और हज के दौरान विनम्रता दिखाना।
निष्कर्ष:
सुन्नतें हज के दौरान पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के तरीकों को अपनाने का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह कार्य हज को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बनाते हैं और अल्लाह की नज़दीकी हासिल करने में मदद करते हैं। हालांकि इन्हें करना आवश्यक नहीं है, लेकिन इन पर अमल करने से हाजी को अधिक सवाब मिलता है।