Gasht k types- गश्त ५ तरह के है

१.खुसूसी गश्त  २. तालीमी गश्त  3. तश्किली गश्त 4. वसूली गश्त 5. उमूमी गश्त 

                                  खुसूसी गश्त

तीन तरह के लोगो से होंगी

१.मस्जिद के जिम्मेदार (काम के बड़े) :-

मस्जिद के सदर या दावत के जिम्मेदारान से मिले तो उन्हें सलाम मुसाफा करे और उनसे कहे माशाअल्लाह अल्लाह ने आपको बड़ी जिम्मेदारी दी है अल्लाह ने आपसे बड़ा काम लिया है अपनी जमात के मस्जिद में आने की और कहा से आई इसकी इत्तेला दे और मुकामी जमात को साथ देने को कहे और आप खुद भी हमारा साथ दे .इंशाअल्लाह बड़ा फायदा होगा.

२.उलमा इकराम आइम्मा हजरात (दीन के बड़े ):-

उलमा इकराम से जब मुलाकात की जाये तो जुबान को काबू में रखे और कुछ हदिया वगैरा साथ लेकर जाए उन्हें सलाम करे मुसाफा  करे और अपनी जमात के बस्ती में आने की खबर दे और उनसे दुआ की दरखास्त करे और अगर उन्हें मुतवज्जह पाए तो कारगुजारी सुनाये अपनी जमात की नोईयत बताये और साथ देने को कहे.

३.दुनियावी एतबार से बढे लोग (जिनकी लोग इज्ज़त करते है उनकी बात मानते है) :-

सलाम करे मुसाफा करे खैरियत पूछे और अपने निगाह और लालाच को काबू में रखे और अपनी जमात कहा से आई बताये और काम के फायदे मुख़्तसर तौर पर बाताये और उनसे कहे के आप बड़े है और लोग आपकी बात मानते है सुनते है आपके पीछे चलते है .आप जमात का साथ देंगे कुछ वक्त फारिग करेंगे तो बोहोत से लोग भी आयेंगे और दीन का बड़ा नफा होगा.

तालीमी गश्त

          जमात में निकलकर मस्जिद में जब तालीम होगी या मुकामपर जब रहते हुए तालीम करोगे तब तालीम के दौरान तालीमी गश्त करे .

          तालीमी गश्त का असल मकसद तश्कील करके नकद मस्जिद में लेकर आना है  और तालीम का जो नूर मस्जिद में है वो तालीमी गश्त के जरिये बस्ती में फैलाना है

          माजिद के बाजू में जितने रास्ते है उसमे से एक रास्ते को पहले दो लोग की जोड़ी को भेजना उन्होंने रास्ते के किनारे बैठे या चौराहे पर बैठे लोग को सलाम करना मुसाफा करना खैरियत पूछे और कहे अल्लाह आपके जान माल और उम्र में बरकते अता फरमाए हम एक फिकर लेकर आये है हम दुनिया और आखिरत में किस तरह कामियाब हो जाए .

          हमारे नबी स्वल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम की फिकर थी की पूरी दुनिया में हर कच्चे पक्के मकान में अल्लाह का दीन पोहोंच जाये और हर ईमान वाला जन्नत में जाने वाला बने.अल्लाह का शुक्र है के की अल्लाह ने हमें ईमान के दौलत से नवाज़ा है. 

          एक हदीसपाक का खुलासा है की हजरत अबू हुरैरह रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है की रसुल्लुल्लाह स. ने इर्शाद फ़रमाया : जो शख्स सुबह और शाम मस्जिद जाता है अल्लाह तआला उसके लिए जन्नत में मेहमानी का इंतज़ाम फरमाते है , जितनी मर्तबा सुबह या शाम मस्जिद जाता है उतनी ही मर्तबा अल्लाह तआला मेहमानी का इंतज़ाम फरमाते है .

और कहे मस्जिद में तालीम हो रही है हम आपको लेने आये है आपके पास जितना वक्त है १० – २० मिनिट उतनी देर बैठे. नकद लेके आने की कोशिश करना है . मस्जिद में साथी को लेके जाने के बाद तालीम के जिम्मेदार को बताना की ये साथी  के पास २० मिनिट टाइम है, तालीम के ज़िम्मेदार का काम है १० मिनट तालीम में बिठाये . फिर उनको थोडा अलाहिदा बिठाकर , ५ मिनट जिम्मेदार साथी उनको  ईमान यकीन की बात बताकर उसकी तशकील कर के उसने दिए हुए वक्त पर छोड़ दे. फिर दूसरी जोड़ी को गश्त के लिए दुसरे रास्ते पर भेजना है .

                                                तश्किली गश्त

तश्किली गश्त याने नकद तैयार करना

सलाम मुसाफा के बाद में ईमान की कीमत बताई जाये .

ईमान सिखने की चीज़ है सहबा ने १३ साल ईमान सिखने की मेहनत की है जब जाके उनका ईमान बना.

इस ईमान को सिखने के लिए हमें अल्लाह के रास्ते में निकलना है .

१.एक हदीस पाक का खुलासा है की  हजरत अबू हुरैरह रजियल्लाहु अन्हु से रिवायत है कि रसुल्लुल्लाह स. ने इर्शाद फ़रमाया : अल्लाह के रास्ते में थोड़ी देर खड़ा रहना शबे कद्र में हजरे अस्वद के सामने इबादत करने से बेहतर है .

२.हजरत सुहैल रजियल्लाहु अन्हु फरमाते है कि मैंने रसुल्लुल्लाह स. को इर्शाद फरमाते हुए सुना : तुममें से किसी का एक घडी अल्लाह तआला के रास्ते में खड़ा रहना उसके अपने घर वालो में रहते हुए सारी उम्र के नेक अमल से बेहतर है .

३.हजरत उस्मान बिन अफ्फान  रजियल्लाहु अन्हु फरमाते है कि मैंने रसुल्लुल्लाह स. को इर्शाद फरमाते हुए सुना : अल्लाह तआला के रास्ते का एक दिन उसके अलावा हज़ार दिनों से बेहतर है .

पुरे ज़िन्दगी में मौत से पहले ४ महीने लगाना है , मौत कब आएगी पता नहीं , तो बताओ भाई कब से निकलेंगे ४ महीने का वक्त नहीं तो चिल्ले में चलो, चिल्ले में वक्त नहीं तो ३ दिन चलो . तैयार होने के  बाद उनसे वसूली जमा करने के लिए कहना है . इसी के साथ साथ ५ वक़्त नमाज़ की पाबन्दी और ५ आमाल में जुड़ने के लिए कहना है, सदका देने और २ रकत नमाज़ पढ के अल्लाह से मांगने के लिए कहना है.

                                        वसूली गश्त

वसूली गश्त याने जो लोग जमात में जाने और मस्जिद में वक्त देने  के लिए तैयार है ऐसे लोगो को  मजबूत इरादे के साथ नगद मस्जिद में लेकर आने की कोशिश करना है .

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