Labbaik Allahumma Labaik – Hindi, English, Arabic

Labaik is also known as Talbiyah (the chant recited by pilgrims during Hajj and Umrah) is as follows:

Labbaik in Arabic

لَبَّيْكَ اللَّهُمَّ لَبَّيْكَ، لَبَّيْكَ لَا شَرِيكَ لَكَ لَبَّيْكَ، إِنَّ الْحَمْدَ وَالنِّعْمَةَ لَكَ وَالْمُلْكَ، لَا شَرِيكَ لَكَ

Labbaik In English

Labbayka Allahumma Labbayk, Labbayka la sharika laka Labbayk, Inna al-hamda wa an-ni’mata laka wa al-mulk, la sharika lak.

Labbaik In Hindi

लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैक ला शरीक लक लब्बैक, इन्नल-हम्द वन्-नियामत लक वल-मुल्क, ला शरीक लक।

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Labbaik Meaning:

“Here I am, O Allah, here I am. Here I am, You have no partner, here I am. Verily all praise, grace, and dominion are Yours. You have no partner.”

The Talbiyah is a powerful expression of submission to Allah, emphasizing the monotheistic belief that only Allah is worthy of worship and has no partners. It is recited frequently during the pilgrimage to focus the pilgrim’s mind and heart on the sacred journey.

तल्बिया (लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक) एक महत्वपूर्ण दुआ है जिसे मुसलमान हज और उमराह के दौरान पढ़ते हैं। तल्बिया पढ़ने के कई धार्मिक और आध्यात्मिक उद्देश्य हैं:

1. अल्लाह की पुकार का जवाब:

“लब्बैक” का अर्थ है “मैं हाज़िर हूँ।” तल्बिया अल्लाह की पुकार का जवाब है। जब एक मुसलमान हज या उमराह के लिए जाता है, तो वह अल्लाह की पुकार पर अपने दिल, दिमाग और शरीर के साथ प्रतिक्रिया करता है, यह बताता है कि वह अल्लाह के आदेश का पालन करने और उसकी इबादत करने के लिए तैयार है।

2. तौहीद (अल्लाह की एकता) की गवाही:

तल्बिया के शब्द अल्लाह की एकता और एकमात्र प्रभुता की पुष्टि करते हैं: “लब्बैक ला शरीक लक” यानी “आपका कोई शरीक (साझीदार) नहीं।” यह तौहीद का सीधा इज़हार है, जो इस्लाम की बुनियादी शिक्षा है।

3. इबादत और समर्पण का इज़हार:

तल्बिया का पाठ करने से यह ज़ाहिर होता है कि इंसान अल्लाह के सामने खुद को पूरी तरह समर्पित कर रहा है। वह मानता है कि सारी इबादत, तारीफ, और नेमतें सिर्फ अल्लाह के लिए हैं। यह समर्पण और इबादत का इज़हार है, जो एक व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से अल्लाह से जोड़ता है।

4. ध्यान और आध्यात्मिकता:

हज और उमराह के दौरान तल्बिया बार-बार पढ़ी जाती है। इससे व्यक्ति का ध्यान अल्लाह की तरफ केंद्रित रहता है और उसे अपनी आध्यात्मिक यात्रा का महत्व याद रहता है। यह व्यक्ति को दुनियावी चीज़ों से दूर कर, उसके दिल में अल्लाह के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना बढ़ाता है।

5. पाकीज़गी और पवित्रता का प्रतीक:

तल्बिया पढ़ना इस बात का संकेत है कि व्यक्ति ने इहराम पहन लिया है, और अब वह एक विशेष पवित्र अवस्था में है। इस समय वह कुछ विशेष नियमों और सीमाओं का पालन करता है, जिससे उसकी आत्मा और शरीर की पाकीज़गी बढ़ती है।

6. अल्लाह की कृपा और नेमतों की पहचान:

तल्बिया यह याद दिलाती है कि इंसान को जो कुछ भी मिला है—चाहे वह इज्जत, धन, या नेमतें हों—वह सब अल्लाह से ही है। “इन्नल-हम्द वन्-नियामत लक वल-मुल्क” के शब्द इस बात का इज़हार करते हैं कि सारी तारीफें और नेमतें अल्लाह ही की हैं।

निष्कर्ष:

तल्बिया पढ़ने का मुख्य उद्देश्य अल्लाह के सामने अपनी भक्ति, समर्पण, और उसकी एकता की गवाही देना है। यह मुसलमानों को हज और उमराह की आध्यात्मिकता से जुड़ने और अल्लाह के करीब आने का एक महत्वपूर्ण ज़रिया है।

The Talbiyah is a special prayer that Muslims recite during Hajj and Umrah. It begins with the words “Labbayk Allahumma Labbayk,” meaning “Here I am, O Allah, here I am.” The Talbiyah is not just a chant; it holds deep spiritual meaning and significance.

सवाल और जवाब

1. तल्बिया क्या है?

उत्तर: तल्बिया एक विशेष दुआ है जिसे मुसलमान हज और उमराह के दौरान बार-बार पढ़ते हैं। इसके शब्द हैं: “लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक, लब्बैक ला शरीक लक लब्बैक, इन्नल-हम्द वन्-नियामत लक वल-मुल्क, ला शरीक लक।” इसका अर्थ है, “मैं हाज़िर हूँ, ऐ अल्लाह, मैं हाज़िर हूँ। आप का कोई साझीदार नहीं। बेशक सारी तारीफें, नेमतें और बादशाहत सिर्फ आपकी है।”

2. तल्बिया कब पढ़ा जाता है?

उत्तर: तल्बिया इहराम पहनने के बाद हज और उमराह की यात्रा के दौरान पढ़ा जाता है। इसे बार-बार, खासकर तवाफ और सफा-मरवा की सई के समय पढ़ा जाता है।

3. तल्बिया का क्या महत्व है?

उत्तर: तल्बिया अल्लाह की पुकार का जवाब है। इसे पढ़कर मुसलमान अल्लाह के सामने अपनी इबादत, समर्पण और तौहीद (अल्लाह की एकता) की गवाही देते हैं। यह अल्लाह की अनुग्रह और नेमतों का शुक्र अदा करने का भी प्रतीक है।

4. तल्बिया क्यों पढ़ते हैं?

उत्तर: तल्बिया पढ़ने का उद्देश्य अल्लाह की इबादत में खुद को पूरी तरह से समर्पित करना है। यह अल्लाह की एकता (तौहीद) को मानने और उसकी नेमतों का शुक्रिया अदा करने का तरीका है। साथ ही, यह हज और उमराह के दौरान व्यक्ति को ध्यान केंद्रित रखने में मदद करता है।

5. क्या तल्बिया केवल हज और उमराह के दौरान ही पढ़ा जाता है?

उत्तर: हां, तल्बिया विशेष रूप से हज और उमराह के दौरान पढ़ा जाता है। यह उस समय पढ़ा जाता है जब व्यक्ति इहराम की स्थिति में होता है और अपने हज या उमराह की आध्यात्मिक यात्रा की शुरुआत करता है।

6. तल्बिया के शब्दों का अर्थ क्या है?

उत्तर: तल्बिया के शब्दों का अर्थ है:

  • लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक: “मैं हाज़िर हूँ, ऐ अल्लाह, मैं हाज़िर हूँ।”
  • लब्बैक ला शरीक लक लब्बैक: “आपका कोई साझीदार नहीं, मैं हाज़िर हूँ।”
  • इन्नल-हम्द वन्-नियामत लक वल-मुल्क: “सारी तारीफें, नेमतें और बादशाहत सिर्फ आपकी है।”
  • ला शरीक लक: “आपका कोई साझीदार नहीं।”

7. क्या तल्बिया पढ़ते समय कोई विशेष नियम हैं?

उत्तर: तल्बिया पढ़ते समय कोई विशेष नियम नहीं हैं, लेकिन इसे साफ दिल और ध्यान केंद्रित होकर पढ़ा जाना चाहिए। इहराम की स्थिति में रहते हुए, इसे जितनी बार संभव हो, बार-बार पढ़ा जाता है, खासकर महत्वपूर्ण हज और उमराह के कार्यों के दौरान।

8. क्या तल्बिया पढ़ने के दौरान व्यक्ति को जोर से बोलना चाहिए?

उत्तर: हां, पुरुषों के लिए तल्बिया जोर से पढ़ना सुन्नत है, जबकि महिलाओं के लिए तल्बिया धीरे-धीरे पढ़ना बेहतर माना जाता है ताकि उनकी आवाज़ गैर-महरम पुरुषों को सुनाई न दे।

9. तल्बिया कब तक पढ़ा जाता है?

उत्तर: हज के दौरान, तल्बिया अराफात के दिन तक लगातार पढ़ी जाती है। उमराह के दौरान, इसे तब तक पढ़ा जाता है जब तक व्यक्ति काबा के पास तवाफ (काबा के चारों ओर घूमना) शुरू नहीं करता।

10. तल्बिया पढ़ने से क्या लाभ होते हैं?

उत्तर: तल्बिया पढ़ने से व्यक्ति अल्लाह के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण को व्यक्त करता है। यह व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है और उसे याद दिलाता है कि वह अल्लाह के बिना कुछ भी नहीं है। साथ ही, यह तौहीद (अल्लाह की एकता) की याद दिलाता है, जो इस्लाम का मूल सिद्धांत है।

निष्कर्ष:

तल्बिया हज और उमराह की यात्रा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह व्यक्ति को अल्लाह के करीब लाने और उसकी नेमतों का शुक्र अदा करने का एक तरीका है।

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