सूरह अन-नबा कुरआन शरीफ़ का 78वां सूरह है। इसके नाम का अर्थ है “समाचार” या “घोषणा”। यह सूरह मक्का में नाज़िल हुई थी। इसमें 40 आयतें और 2 रुकू हैं। सूरह अन-नबा जुज़ 30 में स्थित है।
सूरह अन-नबा
यह सूरह क़यामत के दिन (Day of Judgment) और मुर्दों के दोबारा ज़िंदा होने के बारे में बताती है।
- इसकी शुरुआत काफ़िरों से सवाल करते हुए होती है कि वे उस “बड़ी खबर” के बारे में क्या जानते हैं।
- इसमें बताया गया है कि क़यामत के दिन धरती हिलाई जाएगी, पहाड़ बिखर जाएंगे और इंसानों को उनके आमाल (कर्मों) के हिसाब से अलग-अलग कर दिया जाएगा।
- यह सूरह इस बात पर ज़ोर देती है कि क़यामत का दिन यक़ीनी और लाज़मी है।
- अल्लाह की क़ुदरत और ताक़त को बयान किया गया है, जो पूरी कायनात का ख़ालिक़ और पालने वाला है।
- उस दिन हर इंसान से उसके आमाल का हिसाब लिया जाएगा और उसी के मुताबिक़ उसे इनाम (जन्नत) या सज़ा (जहन्नम) मिलेगी।
सूरह अन-नबा की तिलावत के फ़ायदे | Surah Naba benefits
सूरह अन-नबा की तिलावत और उस पर ग़ौर करने से कई रूहानी (आध्यात्मिक) फ़ायदे हासिल होते हैं:
- यह इंसान को याद दिलाती है कि दुनिया की ज़िंदगी फ़ानी (अस्थायी) है और असली ज़िंदगी आख़िरत की है।
- यह आख़िरत की याद को ताज़ा करती है और अल्लाह की रहमत व इंसाफ़ को बेहतर तरीक़े से समझने में मदद करती है।
- इंसान को अपने आमाल (कर्मों) पर ग़ौर करने और नेक़ी की तरफ़ बढ़ने की तरग़ीब देती है।
- यह सूरह तौबा (माफ़ी मांगने), अच्छे आमाल करने और इंसानी हक़ूक़ अदा करने की प्रेरणा देती है।
- यह याद दिलाती है कि हर आमल का नतीजा है और क़यामत के दिन सबका हिसाब होगा।
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