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सूरह बकरा की आख़िरी 2 आयतें

सूरह बकरा कुरआन शरीफ़ का दूसरा सूरह है। यह मक्का में नाज़िल हुआ और इसमें कुल 286 आयतें हैं।
यह कुरआन का सबसे लंबा सूरह है।
“बकरा” का मतलब है – गाय
इस सूरह में इंसानियत के लिए कई अहम घटनाएँ और सबक़ बताए गए हैं।

सूरह बकरा की आख़िरी 2 आयतें (आयत 285 और 286)

सूरह बकरा की आख़िरी 2 आयतों की बहुत ज़्यादा अहमियत है।

  • इन आयतों में नबी और उनके मानने वालों के ईमान का ज़िक्र है।
  • इसमें अल्लाह को रब, मालिक और राह दिखाने वाला माना गया है।
  • इनमें अल्लाह से माफ़ी, रहमत, हिदायत और ताक़त माँगी गई है।
  • यह आयतें हमें यह सिखाती हैं कि अल्लाह किसी पर उसकी ताक़त से ज़्यादा बोझ नहीं डालता।

सूरह बकरा आख़िरी 2 आयतें पढ़ने के फ़ायदे | Surah Baqarah Last 2 Ayats Benefits of Reciting Last 2 Ayats

  1. जो शख़्स रात को सोने से पहले ये आयतें पढ़ ले, उसके लिए पूरी रात हिफ़ाज़त रहती है।
  2. यह आयतें इंसान को ईमान की मज़बूती देती हैं।
  3. यह हमें याद दिलाती हैं कि अल्लाह बहुत रहमत करने वाला और माफ़ करने वाला है।
  4. इनसे इंसान को सुकून और दिल का चैन मिलता है।
  5. यह आयतें हर मुसलमान को अल्लाह पर पूरा भरोसा रखने की तरग़ीब देती हैं।

आसान लफ़्ज़ों में कहा जाए तो –
सूरह बकरा की आख़िरी 2 आयतें ईमान, माफ़ी, रहमत और अल्लाह पर भरोसा करने की दुआ हैं।

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सूरह बकरा की आख़िरी 2 आयतें 3

Before Start Reading Recite Darud Sharif. 

सूरह बकरा की आखिरी 2 आयतें अरबी में:

  • आयत 285:

آمَنَ الرَّسُولُ بِمَا أُنزِلَ إِلَيْهِ مِن رَّبِّهِ وَالْمُؤْمِنُونَ ۚ كُلٌّ آمَنَ بِاللَّهِ وَمَلَائِكَتِهِ وَكُتُبِهِ وَرُسُلِهِ لَا نُفَرِّقُ بَيْنَ أَحَدٍ مِّن رُّسُلِهِ ۚ وَقَالُوا سَمِعْنَا وَأَطَعْنَا ۖ غُفْرَانَكَ رَبَّنَا وَإِلَيْكَ الْمَصِيرُ

तर्जुमा: रसूल (हज़रत मुहम्मद ﷺ) ने उस चीज़ पर ईमान लाया जो उनके रब ने उन पर उतारी, और उनके साथ बाकी मुसलमानों ने भी। सभी ने अल्लाह, उसके फरिश्तों, उसकी किताबों और उसके रसूलों पर ईमान लाया है। वे कहते हैं कि हम किसी भी रसूल में फर्क नहीं करते। और वे कहते हैं कि हमने सुना और माना। ऐ हमारे रब, हमसे माफी फरमा, और तेरी तरफ ही हमारी वापसी है।

  • आयत 286:

لَا يُكَلِّفُ اللَّهُ نَفْسًا إِلَّا وُسْعَهَا ۚ لَهَا مَا كَسَبَتْ وَعَلَيْهَا مَا اكْتَسَبَتْ ۗ رَبَّنَا لَا تُؤَاخِذْنَا إِن نَّسِينَا أَوْ أَخْطَأْنَا ۚ رَبَّنَا وَلَا تَحْمِلْ عَلَيْنَا إِصْرًا كَمَا حَمَلْتَهُ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِنَا ۚ رَبَّنَا وَلَا تُحَمِّلْنَا مَا لَا طَاقَةَ لَنَا بِهِ ۖ وَاعْفُ عَنَّا وَاغْفِرْ لَنَا وَارْحَمْنَا ۚ أَنتَ مَوْلَانَا فَانصُرْنَا عَلَى الْقَوْمِ الْكَافِرِينَ

तर्जुमा: अल्लाह किसी इंसान पर उसकी ताकत से ज़्यादा बोझ नहीं डालता। इंसान को वही मिलता है जो वह करता है, और उसी की वजह से उसे तकलीफ होती है। ऐ हमारे रब, अगर हमसे कोई भूल हो जाए तो हमारी सजा न दे। और हम पर वैसा बोझ न डाल जैसा तूने हमसे पहले लोगों पर डाला था। ऐ हमारे रब, हम पर ऐसा बोझ न डाल जिसे हम उठाने की ताकत न रखते हों। हमें माफ कर, हमारे गुनाहों को बख्श दे, और हम पर रहम कर। तू हमारा मालिक है, और हमें काफिरों के खिलाफ मदद दे।

फ़ज़ीलतें:

  1. शैतान से हिफाजत: सूरह बकरा की इन आयतों को पढ़ने से इंसान बुरी ताकतों से महफूज़ रहता है।
  2. ईमान की मजबूती: यह आयतें हमें अल्लाह पर मजबूत यकीन और भरोसा दिलाती हैं।
  3. माफी और रहमत: अल्लाह से माफी और रहमत मांगने का ज़रिया हैं।
  4. सकून और सुकून: ये आयतें हमें यकीन दिलाती हैं कि अल्लाह हम पर हमारी ताकत से ज्यादा जिम्मेदारी नहीं डालता।

Surah Bakarah Last 2 Ayat in Roman English

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सूरह बकरा की आख़िरी 2 आयतें 4

ARMAN
ARMANhttps://islamforall.in
Arman Tamboli, Masters in Islamic University. 14+ years of experience helping individuals with Islamic Knowledge & Quran. Certified by Islamic Scholar University.
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